Haryana: ‘डॉ. डेथ’ के बाद अब डॉ. अमित कुमार का चेहरा आया सामने विदेशों के लिए किडनी का खौफनाक कारोबार

Haryana: देवेंद्र शर्मा जिसे ‘डॉ. डेथ’ के नाम से जाना जाता है, गिरफ्तार होने के बाद अब उनके बॉस डॉ. अमित कुमार की चर्चा हो रही है। डॉ. अमित कुमार एक चालाक और खतरनाक शख्स थे जिन्होंने सात साल तक लोगों को धोखा देकर उनके किडनी निकालने का खून-खराबा खेल खेला। इस दौरान उन्होंने लगभग 750 किडनी निकाली लेकिन एक भी भारतीय को ट्रांसप्लांट नहीं की। उनका पूरा फोकस विदेशी मरीजों पर था। वे पहले विदेश में किडनी लेने वाले मरीज को ढूंढ़ते और फिर देश के अलग-अलग हिस्सों में किडनी देने वाले पीड़ितों की तलाश करते। किडनी निकालने के बाद वे उसे सीधे विदेशियों को ट्रांसप्लांट कर देते थे।
डॉ. अमित का बैकग्राउंड और चालाक रणनीति
डॉ. अमित मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले थे और उन्होंने आयुर्वेद की पढ़ाई की थी। उनके पास बीएएमएस की डिग्री थी। बड़े सपने थे लेकिन आयुर्वेद क्लिनिक से आमदनी कम होने के कारण उन्होंने मानव अंगों की तस्करी शुरू कर दी। वे बेहद चालाक थे। उन्हें पता था कि अगर वे देश के मझोले और अमीर तबके के लोगों से किडनी निकालेंगे तो उनकी पकड़ हो सकती है। इसलिए वे हमेशा गरीब, आदिवासी या दलित वर्ग के लोगों को फंसा कर उनकी किडनी निकालते थे। उनकी ये रणनीति उनके लिए बहुत फायदेमंद साबित हुई।
अस्पतालों में अंदरूनी सूत्र और विदेशियों को ठगने की योजना
उस समय देश में किडनी ट्रांसप्लांट का खर्च 50 से 60 लाख रुपये होता था। डॉ. अमित को पता था कि अगर कोई भारतीय इतना पैसा खर्च करेगा तो मामला खुल सकता है। इसलिए उन्होंने कभी भी भारतीय मरीजों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट नहीं किया। उनका पूरा ध्यान उन विदेशी मरीजों पर था जो उनकी मांग के मुताबिक पैसा दे सकते थे। इसके लिए उनके कई अंदरूनी सूत्र बड़े अस्पतालों में काम करते थे। ये सूत्र विदेशों से आने वाले मरीजों की जानकारी देते थे। जांच में पता चला कि डॉ. अमित अपने विदेशी ग्राहकों को कम कीमत पर किडनी देने का झांसा देते थे। जबकि बड़े अस्पतालों में ट्रांसप्लांट का खर्च 50-60 लाख था, डॉ. अमित 40-50 लाख में ये काम करते थे। उन्होंने सीबीआई को बताया कि हर केस में कुल खर्च काटकर भी उन्हें करीब 30-35 लाख का फायदा होता था। साथ ही वे किडनी देने वालों को 30-35 हजार रुपये नकद देकर चुप करा देते थे।
दिल्ली एनसीआर में अस्पताल और लैब की फर्जी झांकी
डॉ. अमित ने विदेशी ग्राहकों को भरोसा दिलाने के लिए दिल्ली एनसीआर में कई अस्पताल और लैब खोल रखी थीं। हालांकि किडनी निकालने और ट्रांसप्लांट का काम वह और उनके साथी डॉ. उपेंद्र केवल फरीदाबाद और गुरुग्राम के कुछ अस्पतालों में करते थे। दोनों जगह उन्होंने गेस्टहाउस को अस्पताल में बदल रखा था। इसी तरह दिल्ली और ग्रेटर नोएडा में भी उन्होंने गेस्टहाउस का उपयोग लैब और अस्पताल की तरह किया था ताकि उनकी हॉस्पिटल नेटवर्क बड़ी दिखे और विदेशी मरीज आकर्षित हों। इस तरह की फर्जी व्यवस्था के पीछे उनका उद्देश्य था विदेशी मरीजों को विश्वास में लेकर उनसे मोटा मुनाफा कमाना।